28/09/2016
27/09/2016
20/09/2016
19/09/2016
Poetry
मेरी किताबों में रखा जो एक खत है,
असल में हकीकतों का दस्तखत है.
जिन्दगी में जो कहीं दर्ज हुआ नहीं,
एक गुमनाम छिपा ये वो ही वक्त है.
इस बंजर से कभी तो फूटेंगी कपोलें,
माना कि इस जमीन की तासीर सख्त है.
एक डाल टूटते ही दो और निकल आती हैं,
क्हते हैं उस गांव में एक ऐसा दर्रख्त है.
मुझे मंजूर नहीं एक सांस भी लेना,
जहां उसने कर रखी हवा भी जब्त है.
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