19/09/2016

Poetry

मेरी किताबों में रखा जो एक खत है,
असल में हकीकतों का दस्तखत है.

जिन्दगी में जो कहीं दर्ज हुआ नहीं,
एक गुमनाम छिपा ये वो ही वक्त है.

इस बंजर से कभी तो फूटेंगी कपोलें,
माना कि इस जमीन की तासीर सख्त है.

एक डाल टूटते ही दो और निकल आती हैं,
क्हते हैं उस गांव में एक ऐसा दर्रख्त है.

मुझे मंजूर नहीं एक सांस भी लेना,
जहां उसने कर रखी हवा भी जब्त है.